हृदय का धड़कना क्या तुमने कभी महसूस किया है। दौड़ लगाने के बाद तेजी से धड़कते दिल की आवाज तुमने जरूर सुनी होगी। कभी-कभी ज्यादा डर जाने पर भी दिल की धक-धक शायद तुमने सुनी हो। अपनी छाती पर हाथ रखो और खुद महसूस करो। छाती की कौन सी तरफ धड़कन ज्यादा ठीक से महसूस होती है। बाई तरफ ठीक कहा ना मैंने। बाई तरफ ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा दिल यानी हृदय छाती के पिंजड़े के थोड़ा सा बाई तरफ होता है। हमारा दिल एक दिन में करीब एक लाख बार धड़कता है और एक साल में करीब साढ़े तीन करोड़ बार धड़कता है। इसीलिए यह शरीर का शायद ज्यादा हिम्मती और ताकतवर पुर्जा है। लेकिन ये सारी धक-धक है किस लिए चलो देखते हैं।

हृदय की कार्यप्रणाली

   हमारा हृदय हमारी मुठ्ठी के आकार का मांसपेशियों से बना एक अंग है। यह पम्प की तरह काम करता है। इस पम्प से रक्त सारे शरीर में पहुंचता है और लौटकर वापस भी आता है। जाते समय यह ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्व लेकर जाता है और शरीर के वापस आते समय कार्बन डाइऑक्साइड लेकर आता है। ये आने-जाने का चक्कर चलाने के लिए ही पम्प की तरह धक-धक करता रहता है। हृदय के चार हिस्से होते हैं दो दाएं और दो बाएं या फिर ये कहे दो ऊपर और दो नीचे। ऊपर वालों को कहते हैं एट्रीएम और नीचे वालों को वेंट्रीकल। तो हम ऊपर वालो कह सकते दायां एट्रीएम और बायां एट्रीएम। इसी प्रकार नीचे वालों को दायां वेंट्रीकल और बायां वेंट्रीकल कहा जाता है। हृदय में रक्त लाने और बाहर ले जाने के लिए मानो पाइप या ट्यूब यानी नलिकाएं होती है। जिन्हें रक्त वाहिनियां कहते हैं। यहां से शुरू होकर पूरे शरीर में रक्त की छोटी-छोटी नलिकाओं का एक जाल सा बिछा रहता है। क्या तुम अंदाजा लगा सकते हो कि इन सारी नलिकाओं को जोड़ दो तो कुल लंबाई कितनी होगी। 100000 किलोमीटर के करीब। यहां जो निले ट्यूब दिखाएं गए हैं वो बताते है इनमें अशुद्ध रक्त है। अशुद्ध का मतलब इसमें ऑक्सीजन कम है और शरीर के ऊपरी हिस्से यानी सर और भुजाओं से रक्त यहां ऊपरी ट्यूब पर आता है और पेट, पांव इत्यादि निचली अंगों से रक्त निचली ट्यूब में आता है। दोनों मिलकर इस दाएं एट्रीएम में कम ऑक्सीजन वाला रक्त छोड़ते हैं इस एट्रीएम का सिर्फ नीचे की तरफ यानी एक तरफा खुलने वाला एक वॉल्व होता है ऐसे और भी दरवाजे होते हैं इन्हें वॉल्व कहते हैं यह वॉल्व तभी खुलता है जब नीचे वाला वेंट्रीकल फैलता है।तब अशुद्ध रक्त यानी कम ऑक्सीजन वाला रक्त वेंट्रीकल में आ चुका होता है और उसके पीछे वाला वॉल्व बंद हो जाता है। यानी वो उल्टा नहीं खुलता है। लेकिन वेंट्रीकल का ऊपर की तरफ खुलने वाला एक और दरवाजा होता है जब यह वेंट्रीकल सुकड़ते तब जैसे एक पाउच को दबाने से अंदर का द्रव्य या पेस्ट बाहर निकलता है वैसे ही यहां रक्त इन बाएं और दाएं ओर से इन नीली ट्यूब से बाहर चला जाता है। लेकिन ये बाहर जाकर आखिर जाएगा कहां। शरीर में नहीं बल्कि फेफड़ों में। एक नीली नलिका दाएं फेफड़े में रक्त ले जाती और दूसरी बाएं फेफड़े में। फेफड़ों में छोटी-छोटी नलिकाएं होती हैं जहां अशुद्ध रक्त की मुलाकात ऑक्सीजन से भरपूर हवा से होती है। यह वह हवा है जब हम सांस लेते हैं तब अंदर आती है। अब यह रक्त लाल हो जाता है। क्योंकि अब इसमें ऑक्सीजन आ चुका है। यह लाल रक्त फेफड़ों से एक बार फिर हृदय की तरफ जाता है और हृदय में बाएं एट्रीएम में अंदर आता है। यहां पर भी एक तरफा खुलने वाला एक वॉल्व है जब वेंट्रीकल फैलता है तब यह शुद्ध लाल रक्त वेंट्रीकल में खींचा चला जाता है और जब वेंट्रीकल सुकड़ता है तब ये ऊपर खुलने वाले वॉल्व से बाहर सिर, भुजाओं के लिए पेट और पैरों की तरफ जाता है। हृदय का सिकुड़ना और सामान्य हो जाना एक धक-धक यानी धड़कन बनाता है। और यह धक-धक चलती रहती है। रक्त शरीर भर में पहुंचता रहता है और लौटकर वापस आता रहता है फेफड़ों में जाता है शुद्ध होता है फिर चल पड़ता है शरीर भर में ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने के लिए शरीर से वापस आता है कार्बन डाइऑक्साइड लेकर जिसे छोड़ देता है फेफड़ों में। तो यह कहानी थी हमारे रक्त परिसंचरण तंत्र की जिसके कारण हम जीवित रहते हैं।

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